राधास्वामी मत
परिचय
राधास्वामी मत कुल्ल मालिक राधास्वामी दयाल ने आप जारी फ़रमाया जब कि वे संत सतगुरु रूप धारण करके मनुष्य चोले में यहाँ पधारे। वे ही पूरे संत और सच्चे गुरु हैं और उन्होंने देह और इन्द्रियों के बंधन और संसार के दुख सुख से छूटने और माया के विघ्नों और जालों को काटते हुए माया के लोकों के पार जाने और अंत में कुल्ल-मालिक के चरनों में पहुँचने के उसूल और जुगत का उपदेश सत्तपद के सच्चे खोजियों को दिया ।
जिस किसी को कुल्ल-मालिक के चरनों में पहुँचने की अभिलाषा उत्पन्न हुई है, उसको चाहिए कि संत सतगुरू की (जो कुल्ल-मालिक के अवतार स्वरूप हैं) खोज करके उनकी मदद लें और उनसे भक्ति और अभ्यास के तरीके का भेद प्राप्त करे।
सुरत को देह और इन्द्रियों और मन के बंधनों से छुड़ा कर सुरत शब्द योग के अभ्यास द्वारा उसे धीरे २ चढ़ाते हुए अंत में पहले बड़े दरजे या सबसे ऊँचे धाम में पहुँचाना, राधास्वामी मतानुसार पूर्ण उद्धार है । राधास्वामी मत के आधार स्वयं कुल्ल- मालिक के उपदेश या शिक्षाए है जो उसने इस पृथ्वी पर नर रूप धारन कर के दी और दया से पतित मनुष्य जाति के हित के लिए संत सतगुरु रूप में कार्रवाई की और फ़रमाया की सुरत शब्द योग का अभ्यास 8 वर्ष के बच्चे से 80 वर्ष का एक बूढ़ा आदमी, भी इसे कर सकता है।
स्वामी जी महाराज
राधास्वामी मत के संस्थापक सेठ शिव दयाल सिंह जी खत्री हैं। राधास्वामी मत के प्रथम आचार्य परम पुरुष पूरन धनी स्वामी जी महाराज का अवतार पन्नी गली आगरा में 24 अगस्त 1818 हुआ था. स्वामीजी महाराज के पिता जी गुरु नानक जी के अनुयायी थे बाद में हाथरस के तुलसी दास जी के अनुयायी हो गए थे.
एक बार तुलसीदास जी ने स्वामी जी महाराज की माता जी को बता दिया था कि आप के घर बहुत बड़ा महापुरुष का जन्म होगा. जिनके अनुयायी पूरी दुनिया में होंगे. स्वामी जी महाराज की शिक्षा पांच वर्ष में प्रारम्भ हो चुकी थी. स्वामी जी महाराज पढ़ने में बहुत तेज थे, उन्होंने बहुत जल्दी, हिंदी,गुरुमुखी, संस्कृत,फ़ारसी और अरबी भाषा सीख ली थी।
आप बचपन से ही शब्द योग के अभ्यास में लीन रहते थे। इन्होंने किसी को गुरु नहीं किया और न ही उन्हें परमार्थ में किसी से निर्देश प्राप्त हुए थे। दूसरी ओर उन्होंने परमार्थ को अपने माता-पिता और उनके पास आने वाले कई साधुओं को समझाया।
छह-सात वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने चयनित स्त्री-पुरुषों को परमार्थ के उच्च कोटि का ज्ञान समझाना शुरू कर दिया था। 1861 से पूर्व राधास्वामी मत का उपदेश बहुत चुने हुए लोगों को ही दिया जाता था परन्तु राधास्वामी मत के दूसरे आचार्य की प्रार्थना पर स्वामी जी महाराज ने 15 फ़रवरी सन 1861 को बसन्त पंचमी के रोज राधास्वामी मत आम लोगो के लिये जारी कर दिया।
सूरत शब्द योग के अभ्यास का खुलासा करके, परम पुरुष राधास्वामी दयाल ने उनसे मिलने की विधि को इतना आसान बना दिया कि सांस को रोकने की कठिन साधना पूरी तरह से बंद हो गई है। उन्होंने ऐसी प्रथा निर्धारित की कि 80 वर्ष का एक बूढ़ा आदमी, और 8 वर्ष का एक युवा लड़का भी इसे कर सकता है।
हुजूर महाराज
हुजूर महाराज राधास्वामी मत के दूसरे संत सतगुरु थे। हुजूर महाराज का जन्म 14 मार्च 1829 को सुबह साढ़े चार बजे पीपल मंडी में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। हुजूर महाराज की देही का नाम सालिग राम माथुर था। हुजूर महाराज की आध्यात्मिक प्रवृत्ति उनके बचपन में ही प्रकट होने लगी थी। स्वामी जी महाराज और हुजूर महाराज के बीच पहली यादगार मुलाकात 1858 में हुई थी। हुजूर महाराज ने परमार्थ (धर्म) पर कई प्रश्न पूछे, जिनके लिए उन्हें बहुत संतोषजनक उत्तर मिले। हुजूर महाराज लगभग बीस वर्षों तक स्वामी जी महाराज के सत्संग में रहे, इस अवधि के दौरान उन्होंने अपने गुरु की सेवा अपने तन, मन और धन के साथ विलक्षण निष्ठा और भक्ति की अकेलेपन के साथ की, जिसकी समानता खोजना असंभव है। हुजूर महाराज के हुक्म पर बड़ी और छोटी किताबें और गद्य और पद्य के ग्रंथ लिखे गए थे, जो सभी उनके समय में मुद्रित और प्रकाशित हुए थे। उन्हें चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे (i) पद्य में प्रेम बानी, (ii) गद्य में प्रेम पत्र, (iii) हिंदी और उर्दू में पुस्तिकाएं और (iv) अंग्रेजी में राधास्वामी मत प्रकाश।
महाराज साहब
महाराज साहब राधास्वामी मत के तीसरे संत सतगुरु थे। उनका जन्म 28 मार्च 1861 को वाराणसी के कबीर चौराहा के पियारी कलां में हुआ था। महाराज साहब की देही का नाम ब्रह्मशंकर मिश्र था। उनके द्वारा हजारों लोगों को राधास्वामी मत विश्वास के सिद्धांतों में दीक्षित किया गया था। आध्यात्मिक सच्चाइयों को पूरी तरह से वैज्ञानिक लाइनों पर स्पष्ट किया गया था। महाराज साहब का निधन शनिवार, 12 अक्टूबर 1907 को बनारस के स्वामीयाँ बाग में हुआ था।
बाबूजी महाराज
बाबूजी महाराज राधास्वामी मत के चौथे संत सतगुरु थे। 19 जून 1861 को इलाहाबाद में बाबूजी महाराज का जन्म हुआ था। बाबू जी महाराज की देही का नाम माधव प्रसाद सिन्हा था । जनवरी 1874 में स्वामी जी महाराज ने बाबूजी महाराज को राधास्वामी मत की दीक्षा दी।